इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड भौतिकी कक्षा 11वी के पाठ 4 सरल रेखा में गति के बारे में विस्तार से बतलाएंगे।यदि हमलोग द्वारा दी गए जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तो के पास अवश्य शेयर करे। मैं विक्रांत कुमार और मेरी।टीम(theguideacademic) आप लोगों की सहायता के लिए हमेशा तात्पर है।
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Board |
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Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Physics |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | सरल रेखा में गति |
Category | Class 11 Physics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
अध्याय: 03 सरल रेखा में गति |
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यांत्रिकी (Mechanics):- भौतिकी विज्ञान की वह शाखा जिसमें पिंडो स्थिति और गति के बारे में अध्ययन किया जाता हैं, यांत्रिकी कहलाता हैं।
यांत्रिकी के मुख्य दो भाग होते है –
(i) स्थैतिकी (ii) गतिज विज्ञान
स्थैतिकी (Statics):- यान्त्रिकी की वह शाखा जिसमे स्थिर पिण्डों की स्थिति का अध्ययन किया जाता है, स्थैतिकी कहलाती है। इसे स्थिति विज्ञान कहते है।
गतिज विज्ञान [Dynamies]:-यान्त्रिकी की वह शाखा जिसमें गतिशील पिण्डों के बारे मे अध्ययन किया जाता है, गतिज विज्ञान कहलाती है।
गतिज विज्ञान के दो भाग होते है-
- (i)शुद्ध गतिकी
- (ii)बलगतिकी
- शुद्ध गतिकी [ Kinematics]:- गतिज विज्ञान की वह शाखा जिसमें गतिशील पिण्डों के बारे में अध्ययन किया जाता है लेकिन उन कारणों का अध्ययन नहीं करते जिसके कारण गति उत्पन्न हुई, शूद्ध गतिकी कहलाती है।
- बलगतिकी [Kinetics]:- गतिज विज्ञान की वह शाखा जिसमें गतिशील पिण्डों के बारे में अध्ययन किया जाता है, साथ में उन कारणों का भी अध्ययन किया जाता है, जिसके कारण गति उत्पन्न हुई, बलगतिकी कहलाती है।
निर्देश तन्त्र (frame of reference]:- ऐसा तन्त्र या निकाय या आकाश जिसमें पिण्ड की स्थिति एवं गति के बारे में अध्ययन किया जाता है, निर्देश तन्त्र कहलाता है।
निर्देश तन्त्र के प्रकार
- कार्तीय निर्देश तन्त्र
- ध्रुवीय निर्देश तन्त्र
- बेलनाकार निर्देश तन्त्र
कार्तीय निर्देश तन्त्र:- कार्तीय निर्देश तंत्र तीन लम्बवत् अक्षो, X-अक्ष. Y-अक्ष तथा Z-अक्ष से मिलकर बनना है। इनके कटान बिन्दु को मूल बिन्दु कहते है।
ये दो प्रकार के होते है-
- द्विविमीय निर्देश तन्त्र:- इसमे दो अक्ष एक दुसरे के लम्बवत स्थित होती है तथा दोनो का प्रतिच्छेद बिन्दु, मूल बिन्दु (0) कहलाता है।→ इस निर्देश तन्त्र में किसी कण की स्थिति को (x,y) से प्रदर्शित करते हैं, जिन्हे निर्देशांक कहा जाता है। जहाँ x =y अक्ष से लम्बवत पुरी है तथा y= x- अक्ष से लम्बवत है।
- त्रिविमीय निर्देश तन्त्र:- इस निर्देश तन्त्र में तीन अक्ष(x – अक्ष, y-अक्ष, z-अक्ष ) एक-दूसरे के लम्बवत होते है।→ तीनों अक्षों का प्रतिच्छेद बिन्दु मुल बिनु कहलाता है।
विराम [Rest] :- कोई वस्तु निर्देश तन्त्र के सापेक्ष अपनी स्थिति नहीं बदलती है तो वस्तु विरामावस्था या स्थिरावस्था में कहलाती है।
गति (Motion):- यदि कोई वस्तु निर्देश तन्त्र के सापेक्ष अपनी स्थिति बदलती है तो उस स्थिति को गति कहते है।
→ गति के तीन प्रकार की होते हैं-
- एक विमीय गति:- यदि कोई पिण्ड सरल रेखा मे गतिशील हो, उसकी गति एकविमीय गति कहलाती है। Ex. सीधी सड़क पर वाहन की गति, मुक्त रूप से गिरती वस्तु की गति
- द्विविमीय गति:- यदि कोई पिण्ड समतल में गतिशील हो, तो पिण्ड की गति द्विविमीय गति कहलाती है।Ex- वृतीय पथ पर गति, बिलियर्ड बॉल की गति
- त्रिविमीय गति:- यदि कोई पिण्ड आकाश में गतिशील हो, तो पिण्ड की गति त्रिविमीय गति कहलाती है।Ex- उडते पतंग की गति, उडते कीट की गति
दूरी (Distance):- किसी वस्तु द्वारा निश्चित समय में तय की गई पथ की कुल लंबाई को ही दूरी कहते हैं।
- इसे S द्वारा सूचित किया जाता है।
- यह एक आदिश राशि है।
- इसका मन सदैव धनात्मक होता है।
- इसका मात्रक मीटर (m) होता है
- C-G-S मात्रक सेमी.(Cm) होता है।
- इसे ऑडोमीटर से मापा जाता है।
- इसका विमा [M0L1T0 ] होता हैं।
- दूरी का मान पथ पर निर्भर करता हैं।
- दो बिंदुओं की मध्य की दूरी अन्नत प्रकार से हो सकती है।
विस्थापन (Displacement):- किसी वस्तु की प्रारंभिक तथा अंतिम स्थिति को मिलने वाली न्यूनतम सरल रेखा की लंबाई को विस्थापन कहते हैं।
- यह एक सदिश राशि है।
- इसका मान धनात्मक, ऋणात्मक तथा शून्य होता है।
- इसका मात्रक मीटर (m) होता है।
- C-G-S मात्रक सेमी.(Cm) होता है।
- इसका विमा [M0 L1 T0 ] होता हैं।
- विस्थापन का मान पथ पर निर्भर नहीं करता हैं।
- किन्ही दो बिंदुओं के मध्य का विस्थापन अद्वितीय होता है।
दूरी तथा विस्थापन, के बीच तुलना-
- 1. विस्थापन का परिमाण, दो बिन्दुओं के बीच न्युनतम सभ्भव दुरी के बराबर होता है।
- अत: दुरी ≥ |विस्थापन|
- 2. गतिशील कण के लिए दुरी कभी ऋणात्मक या शुन्य नहीं हो सकती जबकि विस्थापन हो सकता है।
- 3. दो बिन्दुओं के मध्य का विस्थापन अद्वितीय होता है, जबकि दुरी वास्तविक पथ पर निर्भर करती है तथा दुरी के अनन्त मान हो सकते है।
- 4. गतिमान कण के लिए दुरी समय के साथ कभी घट नहीं सकती है जबकि विस्थापन समय के साथ घट सकता है। समय के साथ विस्थापन घटने का अर्थ है कि कण प्राशीभक बिन्दु की ओर गतिमान है।
- 5. सामान्यतः विस्थापन का परिमाण, दुरी के बराबर नही होग. है, फिर भी यदि गति सरल रेखा के अनुदिश दिशा अपरिवर्तित रहते हुए होती है, तो विस्थापन का परिमाण दुरी के बराबर हो सकता है।
11th physics chapter 3 by Vikrant sir
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