इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड भौतिकी कक्षा 08 पाठ 2 सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु के बारे में विस्तार से बतलाएंगे।यदि हमलोग द्वारा दी गए जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तो के पास अवश्य शेयर करे। मैं विक्रांत कुमार और मेरी टीम(the guide academic)आप लोगों की सहायता के लिए हमेशा तात्पर है।
THE GUIDE ACADEMIC |
Helpline number:- 7323096623 |
Board |
CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 08 |
Subject | Science |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु |
Category | Class 08 Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
2.सूक्ष्मजीव मित्र एवं शत्रु |
सूक्ष्मजीव (Microorganism):- वे जीव जिन्हें मनुष्य नग्न आंखों से नहीं देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी (Microscope) यंत्र की आवश्यकता पड़ती है, उन्हें सूक्ष्मजीव कहते हैं। →सूक्ष्मजीव हवा में पानी में पेड़ों पर जंतुओं पर तथा उनके अंदर प्रायः सभी जगहों पर पाये जाते हैं। जैसे जीवाणु रोगाणु कवक, आदि। →सूक्ष्मजीवों का अध्ययन सूक्ष्मजैविकी (microbiology) कहलाता है →सूक्ष्मजीव हमारे शत्रु (दुश्मन) भी हैं तथा मित्र (दोस्त) भी। वास्तव में कुछ सूक्ष्मजीव हमारे मित्र हैं अर्थात हमारे लिए लाभकारी हैं जबकि कुछ सूक्ष्मजीव हमारे शत्रु हैं अर्थात हमारे लिए हानिकारक हैं। सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण:- सूक्ष्मजीवों को उनके विशेष गुणों के आधार पर निम्नलिखित भागो में बांटा जा सकता है।
(A) जीवाणु (बैक्टीरीया):- जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है,जिनकी कोशिका केंद्रक विहीन होते हैं। कुछ जीवाणु हमारे लिए अच्छे हैं तथा कुछ खराब। बैक्टीरिया का आकार छड़नुमा, स्पाइरल और गोल आदि अनेक तरह के हो सकते हैं। बैक्टीरिया धरती पर जीव का प्रथम रूप था।राइजोबियम, बेसाइलस, क्लोरोफ्लेक्सी आदि बेक्टीरीया के कुछ उदाहरण हैं।टायफाइड, क्षयरोग (टी०बी०) आदि रोग जीवाणओ (बैक्टीरीया) के कारण होते हैं। (B) कवक (फंजाई – Fungi) :- कवक एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों तरह के होते हैं। कवक को पौधे से अधिक जीव माना जाता है। मशरूम, राइजोप्स (ब्रेड मोल्ड),पेनिसीलिएम, आदि कवक के कुछ उदाहरण हैं। →कवक एक प्रकार का परजीवी होता है. जो मरे हुए तथा विघटित हो रहे जैव पदार्थों पर अंकुरित होते तथा पलते हैं। कवक को प्राकृतिक विघटनकारी कहा जाता है। → ये जैव पदार्थों को विघटित करते हैं। कवक मरे हुए जीवों पर अंकुरित होकर उसपर एक प्रकार का पाचन रस छोड़ते हैं, जिसके कारण जैविक पदार्थ द्रव में बदलने लगते हैं उस द्रव का अवशोषण कर कवक पोषण प्राप्त करते हैं। (C) प्रोटोजोआ (Protozoa):- प्रोटोजोआ ऐसे प्राणियों का संघ जिनके सभी प्राणी एककोशिक होते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि प्रोटोजोआ के कुछ उदाहरण हैं। अतिसार, मलेरिया आदि रोग प्रोटोजोआ के कारण होते हैं। (D) शैवाल (Algae):- शैवाल या एल्गी पादप जगत का सबसे सरल जलीय जीव है, जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करता है। शैवाल को पानी गिरने के स्थान, रूके हुए जल आदि में आसानी से देखा जा सकता है। क्लेमाइडोमोनास, स्पाइरोगाइरा आदि कवक के कुछ उदाहरण हैं।
(E) विषाणु (वायरस ):- विषाणु अन्य सूक्ष्मजीवों से थोड़ा अलग होते हैं। विषाणु परजीवी होते हैं। ये केवल दूसरे जैव पदार्थों में ही गुणन करते हैं। विषाणु अधिकांशतया रोग के कारण होते हैं। जुकाम, इंफ्लुएंजा (फ्लू), पोलियो, खसरा आदि रोग विषाणु (वायरस) के कारण होते हैं। ⇒» सूक्ष्मजीव कहाँ रहते हैं? •सूक्ष्मजीव हर जगह रहते हैं तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं। ये तपते रेगिस्तान से लेकर समुद्र की गहराइयों तथा बर्फ में रह सकते हैं। •सुक्ष्मजीव मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाये जाते हैं। •कुछ सूक्ष्मजीव स्वतंत्र रूप से तथा कुछ सूक्ष्मजीव दूसरे पर आश्रित रहते हैं। दूसरे पर आश्रित रहने वाले सूक्ष्मजीवों को परजीवी कहते हैं।
⇒» सूक्ष्मजीव और हम:- सूक्ष्मजीव हमारे शत्रु भी हैं तथा मित्र भी। वास्तव में कुछ सूक्ष्मजीव हमारे मित्र हैं अर्थात हमारे लिए लाभकारी हैं जबकि कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गेनिज्म) हमारे शत्रु हैं अर्थात हमारे लिए हानिकारक हैं। ⇒ सूक्ष्मजीव और हम सूक्ष्मजीव हमारे शत्रु भी हैं तथा मित्र भी। वास्तव में कुछ सूक्ष्मजीव हमारे मित्र हैं अर्थात हमारे लिए लाभकारी हैं जबकि कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गेनिज्म) हमारे शत्रु हैं अर्थात हमारे लिए हानिकारक हैं। →मित्र सूक्ष्मजीवः- > बहुत सारे सूक्ष्मजीव हमारे लिए काफी लाभदायक हैं अर्थात हमारे मित्र हैं। यीस्ट, जो एक बैक्टीरिया है, का उपयोग ब्रेड एवं केक बनाने में, एल्कोहॉल बनाने में किया जाता है। > सूक्ष्मजीवों का उपयोग पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी किया जाता है। जैसे कि कार्बनिक अवशिष्ट यथा सब्जियों के छिलके, जंतु अवशेष, इत्यादि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन कर इन्हें हनिरहित पदार्थों में बदल दिया जाता है। > जीवाणुओं का उपयोग औषधि उत्पादन तथा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में होता है। > लैक्टोबेसाइलस नाम का जीवाणु दूध में जनन कर उसे दही में बदल देते हैं। सूक्ष्मजीवों के निम्नलिखित लाभ है। A. सूक्ष्मजीवों का व्यावसायिक उपयोग:- →सूक्ष्मजीवों का बड़े स्तर पर एल्कोहॉल, शराब, एसिटिक एसिड आदि के उत्पादन में किया जाता है। जौ, गेहूं, चावल एवं फलों के रस में प्राकृतिक रूप से शर्करा पाया जाता है। इन रसों को जब कुछ दिनों के लिए थोड़ा गर्म स्थान में छोड़ दिया जाता है तो इनमें यीस्ट नाम का सूक्ष्मजीव का अंकुरण हो जाता है, जो इन्हें एल्कोहॉल में बदल देता है। →फलों के रसों आदि(शर्करा)का जीवाणु द्वार एल्कोहॉल में बदला जाना किण्वण (फर्मटेशन) कहलाता है।
B. सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग:- →सूक्ष्मजीवों द्वारा तैयार औषधी को प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहा जाता है। →प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक बीमारी पैदा करनेवाले सूक्ष्मजीवी को नष्ट कर देते हैं। एंटीबायोटिक टैबलेट, कैप्सूल या इंजेक्शन के रूप में बाजार में उपलब्ध है, जिसे जरूरत के अनुसार बीमार व्यक्ति को दिया जाता है।
वैक्सिन (टीका) : वैक्सीन (टीका) जो एक प्रकार की दवा के द्वारा विशेष रोगकारक मृत अथवा निष्क्रिय सक्ष्मजीवों को हमारे शरीर में प्रवेश कराकर हमारे शरीर को उस खास प्रकार की बीमारी से सुरक्षित रखने में हमारे शरीर को सक्षम बनाता है। हेजा, क्षय, चेचक, हेपेटाइटिस, पोलिओ बीमारी को वैक्सिन (टीके) से रोका जा सकता है। C. मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि :- कुछ सूक्ष्मजीव मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने में सहयोग देते हैं। कुछ जीवाणु तथा शैवाल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। ये सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन को वायुमंडल से अवशोषित कर उन्हें रीकरण करते मिट्टी में घुलनशील रूप में उपलब्ध कराते हैं। पौधे मिट्टी के इस नाइट्रोजन का अवशोषण कर पोषक तत्वों का संश्लेषण करते हैं। इस तरह मिट्टी में नाइट्रोजन का संवर्धन होता है तथा मिट्टी की उर्वरता में बृद्धि होती है। D. पर्यावरण का शुद्धिकरणः- कुछ सूक्ष्मजीव मृत जीव जंतुओं तथा पादपों को विघटित कर उन्हें साधारण पदार्थ में बदल देते हैं। साधारण रूप में परिवर्तित ये पदार्थ जंतुओं तथा पौधों द्वारा आवश्यकता के अनुसार उपयोग कर लिए जाते हैं। सूक्ष्मजीव चूँकि प्राकृतिक रूप से अपघटनकारी (natural decomposer) होते हैं यही कारण है कि मृत जीव तथा पौधे धीरे धीरे कुछ समय बाद मिट्टी में विलुप्त हो जाते हैं। इन मृत जीवों के विघटित होकर विलुप्त होने से पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। अतः सूक्ष्मजीव पर्यावरण को शुद्ध कर हमारी सहायता करते हैं। हानिकारक सूक्ष्मजीव :- बहुत सारे सूक्ष्मजीव हानिकारक होते हैं। ये हानिकारक सूक्ष्मजीव मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों में अनेक तरह के रोग उत्पन्न करते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े तथा चमड़ों से बनी वस्तुओं को भी खराब कर देते हैं रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों को रोगाणु या रोगजनक कहलाते हैं। मनुष्य में रोगकारक सूक्ष्मजीवः- रोगाणु हवा, पेय जल, तथा भोजन के द्वारा शरीर में प्रवेश कर लोगों को बीमार कर देते हैं।सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक सम्पर्क द्वारा फैलते हैं, संचरणीय रोग कहलाते हैं। हैजा, सर्दी जुकाम, चिकनपॉक्स, क्षय रोग आदि संचरणीय रोग के कुछ उदाहरण हैं। रोगवाहक कीट एवं जंतु :- बहुत सारे कीट एवं जंतु रोगकारक सूक्ष्मजीवों सूक्ष्मजीवों के रोगवाहक का कार्य करते हैं। जैसे मक्खी, मच्छर, तिलचट्टा, चूहे, कुत्ते, बिल्ली आदि। मक्खियाँ कूड़े एवं अन्य गंदे जगहों पर बैठती हैं इसमें रोगकारक सूक्ष्मजीव उनके शरीर से चिपक जाती हैं। जब ये मक्खियाँ बिना ढ़के हुए भोजन पर बैठती हैं तो शरीर से चिपके हुए रोगकारक सूक्ष्मजीवों को स्थानांतरित कर भोजन को संदूषित कर देती है। इस संदूषित भोजन को खाने से व्यक्ति में रोगकारक सूक्ष्मजीवों के स्थानांतर हो जाने से वह बीमार पड़ जाता है। इसलिए भोजन को हमेशा ढककर रखना चाहिए। मादा एनॉफ्लीज मच्छर मलेरिया परजीवी (प्लेज्मोडियस से) का का पाहक पाहक हो होता है। उसी प्रकार मादा एसीस मच्छर डेंगू के रोगाणु (वायरक) का वाहक है। जब भी ये रोगाणुओं के वाहक मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो संबंधित रोगाणुओं के स्थारांतरण हो जाने के कारण स्वस्थ व्यक्ति को बीमार कर देता है। मच्छर से बचाव:- मच्छर रूके हुए जल में अंडे देती है। अतः मच्छर के प्रजनन को रोकने के लिए घर के आसपास जल को जमा नहीं होने देना चाहिए। घरों में मच्छर को भगाने तथा मारने वाले पदार्थों का नियमित उपयोग करना चाहिए।सोते समय हमेशा मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। इस तरह मच्छर के कारण होने वाले बीमारियों से बचा जा सकता है। |
मनुष्यों में सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले सामान्य रोग
|
पौधे में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवः बहुत सारे सूक्ष्मजीव पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। गेहूँ, धान, आलू, गन्ने,संतरा, सेब आदि के फसल सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले रोगों के कारण प्राय खराब तथा नष्ट हो जाते हैं। पौधों में रोग हो जाने के कारण या तो उत्पादन कम हो जाता है या फसल के नष्ट हो जाने के कारण उत्पादन बिल्कुल ही नहीं हो पाता है।
•नींबू में होने वाला नींबू कैंकर नाम का रोग जीवाणु के कारण होता है तथा वायु द्वारा फैलता है। •गेहूँ की फसल में गेहूँ की रस्ट नाम का रोग कवक (फंजाई) के कारण होता है। यह रोग वायु तथा संक्रमित बीज के द्वारा फैलता है। •भिंडी के पौधों में भिंडी की पीत नाम का रोग वायरस के कारण होता है तथा कीटों के कारण फैलता है। खाद्य विषाक्तन (फुड प्वायजनिंग): हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले कई सूक्ष्मजीव कई बार विषैले पदार्थ उत्पन्न कर खाद्य को विषाक्त कर देते हैं। इस विषाक्त भोजन को खाने पर व्यक्ति बीमार पड़ जाता है। ऐसे विषाक्त भोजन के कारण होने वाले रोग को खाद्य विषाक्तन कहते हैं। खाद्य परिरक्षण :- खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने को खाद्य परिरक्षण कहा जाता है। खाद्य पदार्थों का कई तरीकों से परीक्षण किया जाता है। रसायनिक उपाय द्वारा खाद्य का परिरक्षण: सोडियम बेंजोएड तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट भी सामान्य परिरक्षक हैं। जैम, जेली एवं स्क्रैश बनाने में इन रसायन का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का प्रयोग जेम, जेली एवं स्क्रैश को लम्बे समय तक खराब होने से बचाये रखता है। साधारण नमक द्वारा परिरक्षणः-साधारण नमक एक प्राकृतिक परिरक्षक है। नमक से ढ़क देने से खाद्य पदार्थों पर सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है, जिससे वे लम्बे समय तक उपयोग में लाये जा सकते हैं। नमक का उपयोग खाद्य पदार्थों से नमी को सोख लेता है नमी की अनुपस्थिति में उनमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है।नमक का उपयोग मांस, मछली, आम, आँवला, नींबू, इमली आदि के परिरक्षण के लिए किया जाता है। चीनी द्वारा परिरक्षण :- चीनी भी नमक की तरह ही नमी को सोख लेता है तथा सूक्ष्मजीवों को उत्पन्न होने से रोकता है। चीनी का उपयोग जैम, जेली, स्क्कैश आदि बनाने में किया जाता है, जिससे लम्बे समय तक इन खाद्य पदार्थों को उपयोग में लाया जा सकता है। तेल एवं सिरके द्वारा परिरक्षण :- तेल एवं सिरके सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं, इसलिए तेल एवं का उपयोग खाद्य पदार्थों के परिरक्षण के लिए किया जाता है। सब्जियाँ, फल, मछली तथा मांस का परिरक्षण तेल एवं सिरके को मिलाकर किया जाता है। गर्म एवं ठंढ़ा कर परिरक्षण करना : अधिक गर्मी सूक्ष्मजीवों को नार कर देता है तथा अधिक ठंढ़क सूक्ष्मजीवों की बृद्धि को रोकता है। दूध को उबाल देने पर उसके सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं तथा दूध अधिक समय तक खराब नहीं होता है। खाद्य पदार्थों को रेफ्रिजरेटर में कम तापमान पर रखने पर उसमें सूक्ष्मजीवों की बृद्धि नहीं होती है। इसलिए घरों में दूध को उबाल कर तथा खाद्य पदार्थों को अधिक समय रक्षित रखने के लिए रेफ्रिजरेटर में रख जाता है। पाश्चुराइजेशन :- दूध को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने का एक तरीका पाश्चराइजेशन है। पाश्चराइजेशन की प्रक्रिया में दूध को पहले 70° C के तापमान पर गर्म किया जाता है फिर उसे एकाएक ठंढ़ा कर दिया जाता है तथा उसका भंडारण कर दिया जाता है। ऐसा करने पर सूक्ष्मजीवों की बृद्धि रूक जाती है तथा दूध लम्बे समय तक खराब नहीं होता है। लुई पाश्चर, जो एक फ्रेंच वैज्ञानिक थे, ने पाश्चराइजेशन (पॉश्वरीकरण) की खोज की थी। उनकी प्रतिष्ठा में दूध के परिरक्षण की इस विधि को पाश्चराइजेशन (पॉश्चरीकरण) कहा जाता है। आजकल पॉश्चरीकृत (pasturized) दूध बाजार में प्लास्टिक की थैलियों में आसानी से उपलब्ध होता है। भण्डारण एवं पैकिंग :- खाद्य पदार्थों को वायुरहित डिब्बों तथा पैकेटों में बंद कर देने से उसमें सूक्ष्मजीवों की बुद्धि रूक जाती है तथा इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक बिना खराब हुए भंडारित किया जा सकता है। आजकल सब्जियाँ, मेवे, चिप्स, मिठाइयाँ तथा अन्य कई खाद्य पदार्थो वायुरहित डिब्बों में बाजार में उपलब्ध होते हैं। डिब्बों में बंद ये खाद्य पदार्थ लम्बे समय तक खराब नहीं होते हैं तथा उपयोग में लाये जाते हैं। नाइट्रोजन स्थिरीकरण : नाइट्रोजन सभी जीव जंतुओं के लिए एक आवश्यक घटक है। पौधे नाइट्रोजन का उपयोग कर प्रोटीन बनाते हैं। यही प्रोटीन जीव जंतुओं द्वारा खाद्य पदार्थ के द्वारा ग्रहण करते हैं। वायुमंडल में लगभग 78% नाइट्रोजन है। सभी जीव जंतु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर हैं। पौधे तथा जंतु वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग सीधे नहीं करते हैं।मिट्टी में पाये जाने वाले कुछ जीवाणु तथा शैवाल वायुमंडल में वर्तमान नाइट्रोजन को अवशोषित कर उसे घुलनशील रूप में मिट्टी में उपलब्ध कराते हैं। पौधे मिट्टी में उपलब्ध इस नाइट्रोजन को जड़ों द्वारा अवशोषित कर प्रोटीन तथा पोषक तत्वों में संश्लेषित कर खाद्य के रूप में संरक्षित कर लेते हैं। जीव जंतु पौधे द्वारा संश्लेषित भोजन की करने पर इस नाइट्रोजन को प्राप्त करते हैं। पौधों तथा जंतुओं की मृत्यु के बाद विघटित करने वाले जीवाणु तथा कबक इनका विघटन कर नाइट्रोजनी अपशिष्ट को नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर मिट्टी में मिला देते हैं जिसका अवशोषण पुनः पौधों द्वारा कर भोजन का संश्लेषण किया जाता है। इस तरह वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा स्थिर रहती है। इस चक्र को नाइट्रोजन चक्र कहा जाता है। |
DOWNLOAD NOW |
---|
|