Class 12th physics notes in hindi | Bihar Board class 12th physics notes | 12th physics chapter 4 notes|Bihar Board class 12th physics chapter 4 notes in Hindi|@theguideacademic

 

Class 12th physics notes: इस लेख में मैं बिहार बोर्ड भौतिकी कक्षा 12 पाठ 4 गतिमान आवेश तथा चुंबकत्व के बारे में विस्तार से बतलाएंगे।यदि हमलोग द्वारा दी गए जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तो के पास अवश्य शेयर करे। मैं विक्रांत कुमार और मेरी टीम(the guide academic)आप लोगों की सहायता के लिए हमेशा तात्पर है।

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Board

CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board,  Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter no. Chapter 4
Chapter Name गतिमान आवेश तथा चुंबकत्व 
Category Class 12 Physics Notes in Hindi
Medium Hindi
अध्याय:- 4 गतिमान आवेश तथा चुंबकत्व 

Class 12th physics notes in Hindi medium

ऑस्टेड का प्रयोग:- सन् 1820 में ऑस्टेड ने धारावाही चालक से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन के लिए एक विद्युत परिपथ व एक चुंबकीय सुई ली,विद्युत परिपथ में एक बैटरी ,एक कुंजी व एक धारा नियंत्रक लगा होता है।

*उपरोक्त ऑस्टेड के प्रयोग से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि गतिमान आवेश के चारे ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।जिसे विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं।

अतः उन्होंने विद्युत और चुंबक के बीच संबंध स्थापित किया।

चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic field):-

किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें किसी चुंबकीय पदार्थ रखने पर वह बल का अनुभव करता है, चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है। और इस बाल चुम्बकीय बल कहते है।

 

गतिशील आवेश पर लगने वाला चुंबकीय बल,आवेश के परिणाम तथा चुंबकीय क्षेत्र के लम्बवत वेग के घटक के समानुपाति होता हैं।

मना q आवेश v वेग से एक समान चुंबकीय क्षेत्र (B)में कोण θ बनाकर गति करता है,तब चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आवेश पर लगाया गया बल

F α q ——-i ,F α v —–ii, F α B —–iii ,F α sinθ —iv

  • यह एक सदिश राशि है।
  • इसका S.I मात्रक – Ns/Cm या N/Am या टेस्ला(T)
  • इसका C.G.S मात्रक – गॉस(G) होता है।
  • 1 टेस्ला = 10G या 1G= 10– 4T
  • इसका विमा – [M1 L1 T A1]

Class 12th Physics hysics Chapter hapter 4 Notes in Hindi Medium

NOTE:-

  • यदि θ=90° हो तो Fmax= qvB अर्थात् यदि आवेश चुंबकीय क्षेत्र के लम्बवत गति करता है तो उस पर अधिकतम चुंबकीय बल लगता है।
  • यदि θ= 0° हो तो Fmax = 0 अर्थात् यदि आवेश चुंबकीय क्षेत्र के समांतर या प्रतिसमांतर गति करता है तो उस पर न्यूनतम चुंबकीय बल लगता है।
1 टेस्ला:- यदि 1C का आवेश चुंबकीय क्षेत्र में 1m/s के वेग से लंबवत गति करे एवं उस पर कार्यरत बल 1N हो तब चुंबकीय क्षेत्र का मान 1 टेस्ला होगा ।

चुंबकीय क्षेत्र की दिशा:- 

1. SNOW नियम:- इस नियम के अनुसार यदि किसी तार में धारा का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है तथा तार के ऊपर चुंबकीय सुई है तो चुंबकीय सुई में विक्षेप उत्तरी ध्रुव का पश्चिम हो जाता है।

2. दाएं हाथ के अंगूठा के नियम :- इस नियम के अनुसार यदि किसी धारावाही चालक को दाहिने हाथ इस प्रकार पकड़े की अंगूठा धारा की दिशा में रहे तो मुड़ी हुई अंगुलिया चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को बताएंगी।

3.मैक्सवेल का पेंच नियम:- इस नियम के अनुसार यदि किसी पेंच को इस प्रकार घुमाया जाए कि उसकी नोक धारा की दिशा में आगे बढ़े तो पेंच को घुमाने की  दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है।

📝विक्रांत सर

Class 12th physics Chapter wise Notes 

धारावाही चालक पर लगने वाले चुंबकीय बल की दिशा:- 

1.फ्लेमिंग के बाय हाथ का नियम:- इस नियम के अनुसार बाय हाथ के अंगुठे,तर्जनी,तथा मध्यमा को इस प्रकार फैलाए कि तीनों परस्पर लंबवत हो।तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को,मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को,तथा अंगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा को व्यक्त करती हैं।

2.दाएं हाथ के हथेली के नियम:-  इस नियम के अनुसार दाहिने हाथ की हथेली को इस प्रकार फैलाए कि उंगलियां और अंगूठा एक दूसरे के लंबवत रहे,यदि उंगलियां चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में और अंगूठा धारा की दिशा में हो तब हथेली पर खींचे गये अभिलम्ब की दिशा चालक पर लगने वाले बल की दिशा को बतलायेगी।

धारावाही चालक पर लगने वाले चुंबकीय बल:-

माना एक L लंबाई की छड़ जिसमे I धारा प्रवाहित हो रही हो को एकसामन चुंबकीय क्षेत्र(B) में θ कोण बनाकर रखा जाता हैं।

स्थिति ii » जब θ=90° हो अर्थात् चालक,चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रखा हो – F=IBLsin90° या F=IBL

लॉरेज बल:- 

  • आवेश एकसामान चुंबकीय क्षेत्र में θ कोण बनाकर गति करे तब उस पर कार्यरत बल- FB= q(V×B)
  • आवेश एकसामान विद्युत क्षेत्र में गति करे तब विद्युत क्षेत्र के कारण कार्यरत बल FE=qE को “लॉरेंज विद्युत बल “कहते हैं।
  • यदि q आवेश v वेग से एकसामान चुंबकीय क्षेत्र व विद्युत क्षेत्र में गति करे तब उस पर चुंबकीय क्षेत्र व विद्युत क्षेत्र के कारण लगने वाले बालों के सदिश योग को “लॉरेंज बल“कहते है।

लॉरेंज बल F=FB+FE

F = q(V×B) +qE

F = q(V×B+E)

F = q(V×B+E)

जब आवेश चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत गति करे:- 

  • जब एक q आवेश v वेग से एक समान चुंबकीय क्षेत्र में लंबवत प्रवेश करता है तो चुंबकीय क्षेत्र इस पर बल लगता है जिसके कारण आवेश वृत्ताकार पथ में गति करता है।
  • चुंबकीय क्षेत्र के कारण लगने वाला बल इसे आवश्यक अभिकेंद्रीय बल प्रदान करता हैं।
जब आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र से θ(0°<θ<90°) के कोण से प्रवेश कर गति करे :- – 

  • जब कण चुंबकीय क्षेत्र में θ कोण से प्रवेश करता हैं तो VΙΙ= Vcosθ पर चुंबकीय क्षेत्र कोई बल नहीं लगता जबकि Vलंब= Vsinθ पर चुंबकीय क्षेत्र (qVBsinθ) बल लगता है।
  • Vcosθ के कारण कण सरल रेखीय पथ पर गति करना चाहता है परन्तु Vsinθ के कारण वृताकार पथ पर गति करना चाहता है।
  • इन दोनों गति के कारण पथ कुंडलीनुमा हो जाती है।

NOTES:-  ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे अलास्का व उत्तरी कनाडा में आकाश में रंगीन सुंदर ,नृत्य करते हुए हरे एवं गुलाबी प्रकरण दिखाई देखे हैं ।यह घटना आवेशित कण के गति के कारण होता है,इस घटना को “उत्तरी-ध्रुवीय ज्योति” कहते है।
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साइक्लोट्रॉन (Cyclotron)

इसका आविष्कार E.O लॉरेंज तथा M.M. लिविंगस्टोन ने सन् 1934 में किया था।

साइक्लोट्रॉन  एक ऐसा विद्युत चुंबकीय यंत्र है,जिसकी सहायता से धनावेशित कणों( प्रोटॉन,ड्यूटान,α- कण,Li+, He+, )को त्वरित गति प्रदान की जाती  हैं।

सिद्धांत:- 

साइक्लोट्रॉन में विद्युत क्षेत्र एवं चुंबकीय क्षेत्र एक – दूसरे के लंबवत लगे होते हैं।विद्युत क्षेत्र आवेशित कण कण को ऊर्जा प्रदान करता है तथा चुंबकीय क्षेत्र आवेशित कण को वृताकार पथ पर घुमाने का कार्य करता है।

बनावट:- 

  • साइक्लोटान में दो शक्तिशाली विद्युत चुंबक ऊपर से नीचे की ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते है।
  • इन चुम्बकों के मध्य में दो अर्धवृतकर खोखले धातु के पत्र रखे होते हैं ,जिनके व्यास एक – दूसरे के समांतर होते हैं  जिन्हें साइक्लोटान डीज कहते है।
  • इन डीज Dवा D2 को उच्च आवृति 106Hz से 104Hz वोल्ट के विभवंतर से संयोजित किया जाता हैं।

कार्यविधि:-

  • साइक्लोट्रॉन में दोनों डीज को रेडियो आवृति स्रोत से जोड़ा जाता है,दोनों डीज के मध्य धनावेशित कण को रखा जाता है।
  • माना किसी समय पर, अर्धधचक्र में Dधनात्मक व Dऋणात्मक है तो धनावेश D2 के ओर गति करता है,चुंबकीय क्षेत्र उस वृताकार पथ में घुमाने का कार्य करता हैं,जिससे आवेश पुनः डीज के मध्य भाग में आ जाता है,उसी समय डीज ध्रुवता बढ़ जाती है।अर्थात् D1डीज ऋणात्मक व D2 धनात्मक है तो आवेश Dकी ओर गति करता है। चुम्बकीय क्षेत्र आवेश को वृताकार पथ में घुमाता हुआ डीज के मध्य क्षेत्र में ले आता है।
  • यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है, प्रत्येक अर्द्ध चक्र में आवेश को qV ऊर्जा प्राप्त होती है अर्थात् एक चक्कर में आवेश को 2qV ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • आवेशित कण के वृताकार पथ की त्रिज्या लागतार बढ़ती है,ऊर्जा भी लगातार बढ़ती है,अंत में आवेश को लक्ष्य पर प्रक्षेपित कर दिया जाता है।

गणितीय विश्लेषण:-

साइक्लोट्रॉन में आवेशित कण को वृताकार पथ में घुमाने के लिए आवश्यक अभिकेंद्रीय बल, चुम्बकीय बल से प्राप्त होता है – 

अभिकेंद्रीय बल = चुंबकीय बल

mv2/r = qvB

mv/r = qB

  1. आवेशित कण की त्रिज्या r= mv /qB
  2. आवेशित कण का वेग – v = qBr/ m
  3. आवेशित कण की आवृति – ω =qB/m
  4. आवेशित कण का आवर्तकाल – T= 2πm/qB
  5. आवेशित कण का रेखीय आवृति –
  6. आवेशित कण की ऊर्जा – E = q2B2r2/2m
  • यदि अधिकतम गतिज ऊर्जा प्राप्त करने में धनावेशित कण द्वारा लगाएं गए चक्कर की संख्या N हो तो N चक्करों में अर्जित गतिज ऊर्जा –

E=N(2qv)

N(2qv) = q2B2v2/2m

N = q B2r2/4m

सीमाएं:- 

  1. इसके द्वारा ऋणावेशित एवं अनावेशित (न्यूट्रॉन) को त्वरित नहीं कर सकते हैं।
  2. साइक्लोट्रॉन की सहायता से केवल भारी धनावेशित कण को ही त्वरित किया जा सकता है।हल्के कणों जैसे इलेक्ट्रॉन का अधिक वेग पर द्रव्यमान बढ़ जाता हैं।

उपयोग:- 

  1. नाभिकीय विखंडन में
  2. रेडियोएक्टिव पदार्थ के निर्माण में
  3. चिकित्सा में
  4. समस्थानिक उत्पन्न करने में
बायो सार्बट का नियम:- 

  • फ्रेंच भौतिक वैज्ञानिक बायो सार्बट ने किसी धारावाही चालक से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करने का नियम दिया जिसे हम बायो सार्बट का नियम के नाम से जानते है।

अपेक्षिक चुंबकशीलता (μr):-  माध्यम की चुंबकशीलता तथा निर्वात में चुंबकशीलता के अनुपात को ही आपेक्षिक चुंबकशीलता कहते है।

μ = μo μr

  • μr एक मात्राकविहीन व विमाहीन राशि है।
  • μr इसका मान माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है।

बायो सार्बट का अनुप्रयोग:- 

  1. किसी कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की गणना।
  2. किसी कुंडली के अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र गणना।

1.किसी कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की गणना।

माना कि एक धारावाही कुंडली है जिसमे I धारा प्रवाहित हो रही है तो N फेरो में चुम्बकीय क्षेत्र –

dBकेंद्र =(μoIdlsinθ)/4πr2

स्थिति.1 :- यदि बिंदु p कुंडली की त्रिज्या R की तुलना में अधिक दूरी पर हो तो R<<X तो X2की तुलना में R2 नगण्य है।

B = μoNIR2/2x3

👉 एम्पियर का परीपथिया नियम

एम्पियर के नियमानुसार निर्वात या वायु में बंद पथ से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र का रेखा समकलन,बंद वक्र से गुजरने वाली धाराओं के बीजगणितीय योग का μoगुना होता है।

B•dl= μoI

  • जहां ∫B•dl – चुंबकीय क्षेत्र का बंद रेखा समकलन
  • ∑I – बंद वक्र से गुजरने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग

एम्पियर के नियम का अनुप्रयोग:- 

  1. किसी अन्नत धारावाही चालक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र ।
  2. किसी बेलनाकार धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र ।
  3. परिणालिका के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की गणना।
  4. टोरॉइड के भीतर चुंबकीय क्षेत्र की गणना।

i. किसी अन्नत धारावाही चालक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र:- 

ii. किसी बेलनाकार धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र 

परिनालिका (Solenoid):-

यदि खोखले कुचलक बेलन पर एक समान रूप से विद्युतरोधी तांबे के तार लपेट दिया जाए तो प्राप्त व्यवस्था परिनालिका कहलाता है।

  • परिनालिका की लंबाई अधिक तथा त्रिज्या कम रखी जाती है।
  • परिनालिका की सहायता से एक समान चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है।

आदर्श परिनालिका :- वह परिनालिका जिसकी त्रिज्या,लंबाई की तुलना में नगण्य हो।

  • इसके बाहर चुंबकीय क्षेत्र नगण्य होता है।
  • इसके भीतर चुंबकीय क्षेत्र एक समान होता है।

⇒ धारावाही परिनालिका का एक सीरा N ध्रुव व दूसरा सिर S ध्रुव की तरह व्यवहार करता है।

iii. आदर्श परिनालिका के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की गणना:- 

  • माना अनंत लंबाई के एक धारावाही परिनालिका है, जिसमें I धारा प्रवाहित हो रही है।एम्पियर के नियम की सहायता से चुंबकीय क्षेत्र की तिव्रता ज्ञात करने के लिए एक बंद पथ का चयन करते हैं तथा फेरो की संख्या N हैं।

 

  • एम्पियर के नियम से –

∫B•dl = μo∑I

ट्रॉयड (Toroid):- 

  • यदि किसी खोखले कूचालक बेलन जिस पर विद्युतरोधी तांबे की तार लिपटे हो को मोड़कर वृताकार कर दिया जाए तो प्राप्त व्यवस्था को ट्रॉयड कहलाती हैं।
  • ट्रॉयड की त्रिज्या लंबाई की तुलना में कम होता हैं।
  • ट्रॉयड की सहायता से भी एक समान चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

ट्रॉयड द्वारा घिरे रिक्त स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र :- 

  • बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए r1त्रिज्या के बंद वलय की कल्पना करते है,किन्तु इस वृतीय पथ से बद्ध कोई धारा नहीं है।

अतः Io= 0 तब

एम्पियर के नियम से – 

∫B•dl = μoIo

B= 0

अतः ट्रॉयड द्वारा घिरे रिक्त स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र शून्य होता है।

ट्रॉयड के बाहर रिक्त स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र:- 

  • माना ट्रॉयड के बाहर कोई बिंदु R है ,बिंदु R पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए r2 त्रिज्या के वृतीय पथ की कल्पना करते है।परन्तु वृतीय पथ से बद्ध क्षेत्रफल के भीतर ट्रॉयड में प्रत्येक फेरा दो बार गुजरता है,जिनमे प्रवाहित विद्युत धारा का मान समान तथा दिशाएं विपरीत होती है।अतः वृतीय पथ द्वारा परिणामी धारा शून्य होगी ।

Io=0 

एम्पियर के नियम से – 

∫B•dl = μo× Io

B= 0

अतः बाहर भी चुंबकीय क्षेत्र शून्य होगा।

ट्रॉयड की क्रोड के भीतर चुंबकीय क्षेत्र:- 

  • ट्रॉयड की क्रोड के भीतर बिंदु Q लेते है, बिंदु Q पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए ट्रॉयड के सकेंद्रीय r त्रिज्या के वृतीय पथ की कल्पना करते है।
  • वृतीय पथ के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र B तथा सादिश dl दोनों समान दिशा में है।अतः θ=0

एम्पियर के नियम से – 

विक्रांत सर 
परमाणु में परिक्रमी इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय द्विध्रुव आघ्रुर्ण:-

  • माना कोई इलेक्ट्रॉन किसी नाभिक के चारों ओर r त्रिज्या की वृतीय कक्ष में एकसामान कक्षीय चाल V से चक्कर लगा रहा है –

 

  • एक चक्कर में वेग  V = 2πr/ T T = 2πr/ V
  • प्रवाहित द्विध्रुव आघ्रुर्ण M= NIA से

M= N × qvr/2

  • एक चक्कर के लिए N=1,आवेश q=e‾

M= NeVr/2

ध्रुव सामर्थ्य (Pole Strength):- किसी चुंबक की ध्रुव सामर्थ्य वह शक्ति है।जिससे वह अन्य चुंबकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं।इसे m द्वारा सूचित करते हैं।

  • इसका S.I मात्रक – एम्पियर × मीटर
  • विमा – [AL]
  • यह एक आदिश राशि है।
  • उत्तरी ध्रुव पर धनात्मक तथा दक्षिणी ध्रुव पर ऋणात्मक होता है।
वेग फिल्टर (Velocity filter):- 

  • जब कोई आवेशित कण परस्पर लंबवत विद्युत  एवं चुंबकीय क्षेत्र में उनके लंबवत गति करता है तथा विद्युत व चुंबकीय बल परिणाम में परस्पर बराबर व दिशा में विपरीत हो तो वह उस क्षेत्र में बिना विक्षेपित हुए गति करता है।

qV = qVB

V= E/B

  • इसका उपयोग द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमीटर में आवेशित कणों के विशिष्ठ आवेश के मापने में किया जाता है।

 

12th Physics Full Details Notes.pdf by vikrant sir (2)

 

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मैं विक्रांत पटेल theguideacademic.com वेबसाइट के संस्थापक एवं प्रधान संपादक हूं|जो पिछले 2 वर्षो से लगातार शिक्षा से जुड़ी सभी अपडेट की जानकारी आपको देते आ रहा हूं| मैं विक्रांत पटेल बिहार के एक जिला Buxar के रहने वाला हूं, मैंने स्नातक की पढ़ाई VKSU Arah के अंतर्गत आने वाली Shershah College sasaram से किये है।मेरे द्वारा सबसे पहले सभी बोर्ड के परीक्षा से संबंधित नोट्स ,सरकारी नौकरी, सरकारी योजना, रिजल्ट, स्कॉलरशिप, एवं यूनिवर्सिटी अपडेट से जुड़ी सभी जानकारी ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से दिया जाता हैं।
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