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Textbook | NCERT, BHARTI BHAVAN |
Class | Class 10 |
Subject | physics |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | विद्युत धारा [ Electric Current] |
Category | Class 10 physics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
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Helpline Number:- 7323096623 |
अध्याय:04 विद्युत धारा
विद्युत धारा
⇒विद्युत का खोज करने वाले थेल्स नमक वैज्ञानिक थे जो पुर्तगाल के मिलेट्स नामक एक नगर का व्यापारी थे। जो 2500 ई. पूर्व विद्युत का खोज किया।।
आवेश(Charge):- किसी चालक पदार्थ का वह गुण जो विद्युत बल आरोपित करता है या आरोपित करने की प्रवृति रखता है, उसे आवेश कहा जाता हैं।
आवेश दो प्रकार के होते हैं ।
- धनावेश
- ऋणवेश
- इसकी खोज बेंजामिन फ्रेंकलिन के द्वारा किया गया।
- आवेश को q,Q द्वारा सूचित किया जाता है।
- इसका S.I मात्रक – कुलांब(C) होता हैं।
- इसका C.G.S मात्रक – स्टैट कुलांब या फ्रेंकलिन
- Q= it
- आवेश का सबसे बड़ा मात्रक फ़ैरडे होता है।[1F=96500 C]
- यह एक आदिश राशि है।
- सजातीय आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
- विजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं।
- इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण धनावेश से ऋणवेश की ओर होता है।
आवेश का गुण:-
- आवेश का संरक्षण
- आवेश का क्वांटीकरण (Q=ne)
- आवेश की निश्चितता
- आवेश की योज्यता
आवेशन:- इलेक्ट्रॉन को एक वस्तु से दूसरे वस्तु बीमे स्थानांतरित करने की प्रक्रिया आवेशन कहलाती है।
आवेशन की विधियां:-
- घर्षण द्वारा
- चलन द्वारा
- प्रेरणा द्वारा
कुलांब का नियामक:-
⇒कुलॉम के नियम का खोज करने वाले फ्रांसीसी वैज्ञानिक चार्ल्स अगस्टिन डी कूलम्ब थे, जो वेस्टइंडीज में अपना जीवन फौजी इंजीनियर संभाला और वे पूर्ण 1776 ई0 को पेरिस लौटे और उन्होंने एक कमरा ख़रीद कर दो आवेशों के बीच लगने वाले बल के परिणाम को निकालने के लिए उन्होंने ऐंठन तुला प्रयोग किया और 1785ई0 को इन्होने कूलम्ब के नियम अर्थात इसे इन्होने व्युत्क्रम वर्ग नियम कहा।
इस नियम का प्रतिपादन कुलॉमके पहले प्रिस्टले तथा कैबेडिश ने ही कर चुके थे | लेकिन उसमे इन्होने इन दोनों आवेशों के बिच लगने वाले के परिमाण के बारे में नहीं बताया।
»चार्ल्स अगस्टिन डी कूलम्ब का जन्म 1736 ई० में हुआ और इनकी मृत्यू 1806 ई० में हुआ |
♦कूलॉम के नियम के अनुसार दो स्थर बिन्दु आवेशों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण का बल दोनों आवेशों के परिमाणों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
»जिस स्रोत से आवेशों का प्रवाह ऋण से धन की ओर होता है उसे इलेक्ट्रॉनिक धारा कहा जाता है | एवं जिस स्रोत आवेश का प्रभाव धन से ऋण की ओर होता है उस प्रकार के विधुत धारा को कन्वेंशनल धारा कहा जाता है।
विद्युत धारा [ Electric Current]
♦विद्युत धारा:- किसी चालक से प्रति एकांक समय में प्रवाहित आवेश,विद्युत धारा कहलाता है।या किसी चालक में निश्चित दिशा में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।
विद्युत धारा= आवेश/समय
- इसका S.I मात्रक – CS– 1 या एम्पियर होता है।
- यह एक आदिश राशि है।
- यह अनुप्रस्त कट क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है।
- 1 एम्पियर:- किसी चालक में 1 सेकेंड में 1 कुलांब आवेश प्रवाहित होने पर विद्युत धारा का मान 1 एम्पियर होता है।
- चालक ( Conductor ) – ऐसे पदार्थ जिससे होकर विधुत आवेश उनके एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहलाते है | जैसे – लोहा, चाँदी, मनुष्य, अशुद्ध जल, पृथ्वी |
- विधुरोधी या कुचालक ( Insulator ) – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जा सकते विधुतारोधी कहलाता है | जैसे – मोम, चमड़ा, रबड़, शुद्ध जल |
- विधुत धारा ( Electric current ) – किसी चालक पदार्थ में किसी दिशा में दो बिन्दुओं के बीच आवेश के व्यवस्थित प्रवाह को विधुत-धारा कहते है |
विधुतीय क्षेत्र (Electric field):-आवेश के चारो ओर उपस्थित वैसा प्रभाव जिसके कारण अन्य आवेश पर बल कार्य करता है, विधुतीय क्षेत्र कहलाता है |
▶ धन आवेश में विधुत क्षेत्र बहार की ओर एवं ऋण आवेश में विधुत क्षेत्र अन्दर की ओर होता है |
विधुत विभव ( Electric Potential ) – किसी बिंदु पर विधुत विभव काय का वह परिमाण है जो प्रति एकांक आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है |
विधुत विभव ,
- विधुत विभव का SI मात्रक वोल्ट ( volt, V ) या J/C होता है
- यह एक आदिश राशि है
- पृथ्वी पर विभव का मान शून्य होता है।
विभवांतर ( Potential difference ) – किन्ही दों बिंदुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है |
माना आवेश q को बिंदु B से A तक लाने में किया गया कार्य WAB है विभवांतर ,
- विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट ( volt, V ) या J/C होता है |
- यह एक आदिश राशि है।
- आवेशो का प्रवाह सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है।
- अनंत प्रभु विभव का मान शून्य माना गया है।
» एक वोल्ट :- किसी चालक तार में एक कुलॉम आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किये गये कार्य की मात्रा एक जुल हो तो उसे एक वोल्ट कहा जाता है।
ऐमीटर ( Ammeter ) – जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहा जाता है ।यह किसी विधुत-परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है |
वोल्टमीटर ( Voltmeter ) – जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच के विभवांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहा जाता है | यह किसी विधुत-परिपथ में समांतर क्रम जोड़ा जाता है |
विधुत परिपथ (Electric circuit)
* विधुत परिपथ (Electric circuit) : ऐसी व्यवस्था जिससे विधुत धारा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक होता है, उसे विधुत परिपथ कहा जाता है |
* विधुत परिपथ दो प्रकार का है |
(i) खुला परिपथ (open circuit):- ऐसा विधुत परिपथ जिससे विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है उसे खुला विधुत परिपथ कहा जाता है।
(ii) बंद विधुत परिपथ (Closed circuit) :- वैसा विधुत परिपथ जिससे किसी विधुत धारा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक असानी से हो, उस प्रकार की व्यवस्था को बंद विधुत परिपथ कहा जाता है।
सेल एवं बैटरी – सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहे रासायनिक अभिक्रियाओ द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रॉनों के बीच विभवांतर बनाए रखती है | सेलों की समूहित व्यवस्था को हो बैटरी कहा जाता है |
विधुत-परिपथ के अवयव | संकेत |
सेल | ![]() |
बैटरी | ![]() |
तार संधि | ![]() |
खुली प्लग कुंजी | ![]() |
बंद प्लग कुंजी | ![]() |
खुला स्विच | ![]() |
बंद स्विच | ![]() |
तार क्रॉसिंग | ![]() |
बल्ब | ![]() |
ऐमीटर | ![]() |
वोल्टमीटर | ![]() |
प्रतिरोधक | ![]() |
ओम का नियम ( Ohm’ s Law ) – 1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उनमें प्रवाहित विधुत-धारा का संबंध को एक नियम से व्यक्ति किया जाता है, जिसे ओम का नियम कहते है |
- ओम का पूरा नाम जार्ज साइमन ओम है |
- ओम का जन्म 1787ई० में हुआ तथा मृत्यु 1854ई० में हो गई
- जॉर्ज साइमन ओम जर्मनी के रहने वाले थे |
- ओम ने सन 1827 में यह नियम प्रतिपादित किया था |
- ओम जर्मन भौतिकविद एवं तकनीकी विश्वविधालय के प्रोफेसर थे
⇒ यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विधुत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है |
I α V
या ,
जहाँ R नियतांक है | जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है |
- इसे R द्वारा सूचित किया जाता है।
- इसका S.I मात्रक – ओम (Ω )होता हैं।
- R=V/I
किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
- तार की लंबाई पर – किसी तार का प्रतिरोध R उनकी लंबाई l के समानुपाती होता है | R α l
- तार की मोटाई पर – किसी तार का प्रतिरोध R उनके अनुप्रस्थ कार के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है |।
चालक तार की प्रकृति पर :- उच्च कोटि के चालक तार का प्रतिरोध निम्न होता है |सबसे निम्न कोटि का चालक तार लोहा है एवं सबसे उच्च कोटि का चालक तार चांदी हैं।
- चालक तार के तापमान पर :- किसी चालक तार का तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध का मान बढ़ता है | RαT
विशिष्ट प्रतिरोध(प्रतिरोधकता):-इकाई लम्बाई वाले चालक तार के अनुप्रस्थ कट का क्षेत्रफल के प्रतिरोध को विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है।
या, इकाई लम्बाई चालक तार के अनुप्रस्थ कट के क्षेत्रफल एवं चालक तार के प्रतिरोध के गुणनफल को विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है ।
➤ जिसे प्रायः (रो) द्वारा सूचित किया जाता है |
➤इसका S.I मात्रक Ωm होता है |
प्रतिरोध के आधार पर चालक, प्रतिरोधक और विधुतारोधी की परिभाषा –
- चालक ( Conductor ) – बहुत कम प्रतिरोध वाले पदार्थो को जिनमें से आवेश आसानी से प्रवाहित होता है चालक कहलाता है | जैसे – चाँदी, लोहा, ताँबा |
- प्रतिरोधक ( Resistor ) – उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थ प्रतिरोधक कहलाते है |
- विधुतारोधी ( Insulator ) – बहुत ही अधिक प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनसे आवेश प्रवाहित नहीं हो पाता विधुतरोधी कहते है | जैसे – लकड़ी, प्लैस्टिक आदि |
प्रतिरोधकों का समूहन – दो या दो अधिक प्रतिरोधकों को एक दूसरों से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है इनमें दो विधियाँ मुख्य है –
- श्रेणीक्रम समूहन ( Series grouping )
- समान्तरक्रम या पाशर्व क्रम समूहन ( Parallel grouping )
1.श्रेणीक्रम समूहन ( Series grouping ) –
माना R1 , R2 तथा R3 प्रतिरोध वाले तीन प्रतिरोधक है जिनके सिरों के बीच V1 , V2 तथा V3 विभवांतर है | V = V1 ,+ V2 + V3
V1= IR1 — (1)
V2= IR2 — (2)
V3= IR3 — (3)
समीकरण ( 1 ) , ( 2 ) तथा ( 3 ) को जोड़ने पर ,
V1 + V2 + V3 = IR1 + IR2 + IR3
V = I ( R1 + R2 + R3 )
Rs = R1 + R2 + R3
अत: श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है |
2.पाशर्व क्रम या समान्तरक्रम समूहन ( Parallel grouping )
माना R1 , R2 , R3 प्रतिरोध वाले तीन प्रतिरोधक है जिनमें प्रवाहित धारा क्रमशः I1 , I2 , I3 है |
I = I1 + I2 + I3
समीकरण ( 1 ), ( 2 ), ( 3 ) को जोड़ने पर,
1/R = 1/R₁ + 1/R₂ + 1/R₃
अत: पाश्र्वक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधक का समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधी के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है |
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