मानव नेत्र | Human Eye | Class 10th Physics | Chapter 3 | Hindi Medium

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड भौतिकी कक्षा 10 पाठ 3 मानव नेत्र (Human Eye) के बारे में विस्तार से बतलाएंगे।यदि हमलोग द्वारा दी गए जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तो के पास अवश्य शेयर करे। मैं विक्रांत कुमार और मेरी टीम(the guide academic)आप लोगों की सहायता के लिए हमेशा तात्पर है।

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अध्याय: 03  मानव नेत्र 

Board CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board,  Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
Textbook NCERT,BHARTI BHAVAN
Class Class 10
Subject Physics
Chapter no. Chapter 3
Chapter Name मानव नेत्र [Human Eye]
Category Class 10 physics Notes in Hindi
Medium Hindi
👉मानव नेत्र (Human Eye):-मानव नेत्र एक अद्भुत प्रदत्त प्रकाशीय यंत्र है जो प्रकाश के अपवर्तन के द्वारा किसी वस्तु का अस्थाई प्रतिबिंब बनाता है मानव नेत्र का कहलाता है।

👉बनावट:- 

  • मानव नेत्र लगभग गोलीय होता है | आँख के गोले, जिसे नेत्रगोलक (Eyeball) कहते है। जिसकी सबसे बाहरी परत सफेद मोटे अपारदर्शी चमड़े की होती है , इसे श्वेत पटल (Sclerotic) कहा जाता है |
  • इसका अगला कुछ उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है, जिस कॉनिया (Cornea) कहते है |
  • श्वेत पटल के नीचे गहरे भूरे रंग की परत होती है, जिसे कॉरॉयड (Choroid) कहते है |
  • यह परत आगे चलकर दो परतों में विभक्त हो जाती है आगेवाली अपारदर्शी परत सिकुड़ने-फैलनेवाली डायफ्राम के रूप में रहती है, जिसे परितारिका (Iris) कहते है | पीछे वाली परतें पक्ष्माभी पेशियाँ (Ciliary muscles) कहलाती है |
  • नेत्रगोलक की सबसे सूक्ष्मग्राही परत को दृष्टिपटल (Retina) कहते है |
  • नेत्र लेंस :- यह प्राकृतिक उत्तल लेंस का बना होता है जो वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब रेटिना पर बनाता है |लेंस और रेटिना के बिच का भाग काचाभ द्रव से भरा होता है
  • नेत्र में ध्यान से देखने पर परितारिका के बीच एक छोटा छिद्र दिखता है जिसे पुतली (Pupil) कहते है |
  • देखने की क्रिया – जब प्रकश की किरणें किसी वस्तु से आँख पर पड़ती है तो वे कॉनिया तथा नेत्र-लेंस से अपवर्तन के बाद दृष्टिपटल पर पड़ती है और वहाँ वस्तु का उलटा और छोटा प्रतिबिंब बनता है | दृष्टिपटल में दो घटक रॉड और कोण होते है( i ) रॉड – प्रतिबिंब को सीधा और बड़ा करता है तथा ( ii ) कोन – वस्तु का रंग बताता है |
  • संमजन-क्षमता : वस्तु दूर रहें या निकट , हम उसे साफ-साफ देखते हैं,आँख ऐसा अपने लेंस की फोकस-दूरी को बदलकर करता है। यह परिवर्तन पेशियों के तनाव के घटने-बढ़ने से होता है ऑंख के इस सामर्थ्य को समंजन-क्षमता कहते है |
  • समंजन-क्षमता की एक सीमा होती है सामान्य आँख की न्यूनतम दूरी 25 cm तथा अधिकतम दूरी अनंत होती है।
  • दृष्टि दोष तथा तथा उनके सुधार – कई कारणों से नेत्र बहुत दूर स्थित या निकट स्थित वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर बनाने की क्षमता खो देता है | ऐसी कमी दृष्टि दोष कहलाती है |
  • वह निकटस्थ बिंदु जहाँ पर स्थित किसी वस्तु को नेत्र समंजन की क्रिया से स्पष्ट देख सकता है, नेत्र का निकट बिंदु कहलाता है।एक सामान्य स्वस्थ्य नेत्र का निकट बिंदु या स्पष्ट दृष्टि के अल्पतम दूरी 25 cm होती है।इस दूरी को N से सूचित किया जाता है।
  • दूर – बिंदु और निकट बिंदु के बिच की दुरी को दृष्टि -परास (Range of vision) कहा जाता है।
  • वह दूरस्थ बिंदु जहाँ पर स्थित किसी वस्तु को नेत्र बिना समंजन के स्पष्ट देख सकता है,नेत्र का दूर बिंदु कहलाता है। मानव नेत्र का दूर बिंदु नेत्र लेंस से अनंत दूरी पर होता है |इसे F से सूचित किया जाता है।

मानव नेत्र में दृष्टि दोष  के प्रकार – 

  1. निकट-दृष्टि दोष – जिस नेत्र में निकट-दृष्टि होता है वह दूर स्थित वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख सकता है,लेकिन नजदीक की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है|

निकट दृष्टि दोष के कारण:- 

  • नेत्रगोलक का लंबा हो जाना, अर्थात नेत्र लेंस और दृष्टि पटल के बीच की दूरी का बढ़ जाना।
  • नेंत्र-लेंस का आवश्यता से अधिक मोटा हो जाना जिससे उसकी फोकस-दूरी का कम हो जाना।

उपचार – इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस वाले चश्में का उपयोग किया जाता है |

2. दूर-दृष्टि दोष – जिस नेत्र में दूर-दृष्टि दोष होता है वह निकट स्थित वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख सकता है |

दोष के कारण – इस दोष के दो कारण हो सकते है।

  •  नेत्रगोलक का छोटा हो जाना, अर्थात नेत्र-लेंस और दृष्टिपटल के बीच की दूरी का कम हो जाना।
  • नेत्र-लेंस का आवश्यता से अधिक पतला हो जाना जिससे उसकी फोकस-दूरी बाद बढ़ जाना।

उपचार – इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस वाले चश्में का उपयोग किया जाता है |

3. जरा-दूर दर्शिता – उम्र बढ़ने के साथ वृद्धावस्था में नेत्र – लेंस की लचक कम हो जानी है और पक्ष्माभी मांसपेसियों की समंजन-क्षमता घट जाती है जिससे वह व्यक्ति निकट  और दूर स्थित वस्तु को साफ-साफ नहीं देख पाता है |

उपचार – इस दोष को दूर करने के लिए बाइफोक्स लेंस वाले चश्मे का उपयोग किया जाता है |

4. मोतीयाबींद ( Cataracts ) – उम्र बढ़ने के साथ-साथ नेत्र-लेंस पर प्रोटीन की एक पर जम जाती है जिससे लेंस अपारदर्शी हो जाता है | इसके उपचार के लिए ऑपरेशन की आवश्यकता होती है |

5. दृष्टिवैश्मय ( Astigmatism ) – जिस नेत्र में दृष्टिवैश्मय दोष होता है वह वस्तुओं को भिन्न-भिन्न कोणों पर देखते है |

कारण – यह दोष पुतली के गोलाकार नहीं होने के कारण होता है

उपचार – इसके उपचार के लिए सर्जरी की जाती है या बेलनाकार लेंस का उपयोग किया जाता है |

6. रतौधी ( Night blindness ) – जिस व्यक्ति को रतौधी होती है वह रात में प्रकाश की कमी के कारण वस्तुओं को साॅफ नहीं देख पाता है ।

कारण – यह दोष नेत्र की पुतली के ऊपर एक जालीनुमा परत बन जाने के कारण होता है जिसका समय से उपचार नहीं कराने से यह परत अपारदर्शी हो जाता है ।जिससे व्यक्ति अंधा हो जाता है।इसके उपचार के लिए सर्जरी की जाती है।

वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric refraction) – वायुमंडल में स्थित वायु , धुल-कण , जलवाष्प आदि से सूर्य की प्रकाश की अपवर्तन की क्रिया वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।

वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होने वाली घटनाएँ –

  1. तारों का टिमटिमाना (Twinkling of star ) – पृथ्वी का वायुमंडल का ताप हमेशा एक जैसा नहीं रहता है ठंडी हवा का अपवर्तनांक गर्म हवा की अपेक्षा कम होता है इसलिए तारों से प्रेक्षक तक पहुँचाने वाले किरणें वायुमंडल के अपवर्तनांक में होने वाले परिवर्तनों के कारण अगल-अगल मुड़ जाती है | कभी-कभी मध्यवर्ती वायुमंडल में एकाएक परिवर्तन होने के कारण किरणें एक और अधिक विचलित हो जाती है | जिससे प्रकाश प्रेक्षक से बहुत अधिक विचलित हो जाती है | जिससे प्रकाश प्रक्षेक से बहुत थोड़े समय के लिए अंशत: या पूर्णत: कर जाता है इसलिए तारे टिमटिमाते नजर आते है।
  2. सूर्योदय तथा सूर्यास्त के आभासी समय ( Virtual times of sunrise and sunset )  – पृथ्वी के चरों ओर वायुमंडल है पृथ्वी तल से ज्यों-ज्यों हम ऊपर बढ़ते है वायुमंडल का घनत्व जाता है | जब सूर्य के किरणे निर्यात से वायुमंडल में प्रवेश कराती है तो किरणें अपवर्तित हो जाती है विचलन तब महतम होगा जब सूर्य क्षितिज पर होता है इसी कारण सूर्य अपनी वास्तविक ऊँचाई से ऊँचा दिखाई पड़ता है अत: सूर्य उस समय दिखाई देने लगता है जब वह अपने क्षितिज से थोड़ा नीचे ही होता है इसी प्रकार सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज से नीचे चला जाने के कुछ समय बाद तक दिखाई देता है | जिससे सर्योदय और सूर्यास्त के बीच का लगभग चार मिनट बढ़ जाता है |
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण ( Dispersion of Light ) – श्वेत प्रकाश के इसके विभिन्न रंगों में विभक्त होन की घटना को श्वेत प्रकश कहते है।

प्रकाश के वर्ण विक्षेपण से उत्पन्न सात रंगों की रंगीन पट्टी को स्पेक्ट्रम या वर्ण पट्ट कहते है।

  • इसमें पाई जाने वाले सात रंग बैगनी, जमुनी, नीला, हरा, पिला, नारंगी, और लाल है जिन्हें संक्षेप में बैजनिहपिनाला (VIBGYOR ) कहते है |
  • तरंगदैर्ध्य ( Wavelength ) – भिन्न-भिन्न रंगों का तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होता है | स्पेंक्ट्रम में ऊपर से नीचे आने पर तरंगदैर्ध्य घटता जाता है जिस रंग का तरंगदैर्ध्य अधिक होता है, वह कम फैलता है | जिस रंग का तरंगदैर्ध्य कम होता है वह अधिक फैलता है |
  • बैंगनी रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे कम तथा लाल रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता हैं।
  • प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो चुंबकीय तरंग के रूप में संचारित होती है। तरंगें जीतनी दूरी के बाद अपने आप को पुर्नवर्तित करती है ,उसकी दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है।
  • तरंगदैर्ध्य का SI मात्रक ऐंगस्ट्रम Å होता है।                              1 Å = 10-10 m
  • बैंगनी रंग का बीचनल सबसे अधिक तथा लाल रंग का सबसे कम होता है।

प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण द्वारा होने वाली घटनाएँ 

इंद्रधनुष ( Rainbow ) – वर्षा होने के बाद जब सूर्य चमकता है तो बारीस की बूंदे प्रिज्म-सा व्यवहार करती है जो सूर्य के श्वेत प्रकाश को सात रगों में विभक्त कर देती है जिसके कारण आकाश में अर्धवृत्ताकार रंगीन ही दिखाई पड़ती है जिसे इंद्रधनुष कहते है |

प्रकाश का प्रकीर्णन ( Dispersion of Light ): किसी कण पर पड़कर प्रकाश के एक अंश के विभिन्न दिशाओं में छितराने को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है |

कोलॉइड ( Colloid ) – किसी माध्यम में छोटे-छोटे कणों के निलंबन को कोलॉइड कहा जाता है |

टिंडल प्रभाव ( Tyndall effect ) किसी कोलॉइडीय विलयन में निलंबित कणों से प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव कहा जाता है |

प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होने वालिओ घटनाएँ –

  • आकाश का रंग (Colour of sky ) सूर्य का प्रकाश जब वायुमंडल से होकर गुजरता है, तो उसका वायुमंडल के गैसों के अणुओं, पानी की बूंदों, धुलकणों आदि से प्रकीर्णन होता है इनमें सबसे सूक्ष्म कण गैस के अणु होते है जो नीले रंग को अधिक प्रकिर्णित करते है | यही प्रकिर्णित प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता हैं और इसीलिए हमें आकाश नीला प्रतीत होता है |
  • सूर्य का रंग ( Colour of Sun ) दिन में सूर्य का रंग समय के साथ बदलता रहता है दोपहर को जब सूर्य सिर पर होता है | सूर्य के प्रकाश द्वारा वायुमंडल से होकर तय की गई दूरी न्यनतम होती है | जिसके कारण प्रकाश का प्रकीर्णन कम होता है यही कारण है कि दोपहर में सूर्य अपने वास्तविक रंग में दिखाई पड़ता है | सूर्योदय और सूर्यास्त के समय, वायुमंडल से होकर सूर्य के प्रकाश को अधिक दूरी तय करनी पड़ती है और जिसके कारण प्रकश का प्रकीर्णन अधिक होता है | जिसमें मुख्य रूप से नीला रंग होता है लेकिन अधिक दूरी होने के कारण हमारी आँखों तक आते-आते लाल रंग ही बचता है यही कारण है कि सूर्योदय और समय सूर्य सूर्यास्त का रंग लाल दिखाई पड़ता है |

मानव नेत्र और फोटोग्राफी कैमरा में समानता को लिखें- 
मानव नेत्र  फोटोग्राफी कैमरा
1.यह प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है। 1.यह प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
2.यह उत्तल का बना होता हैं। 2.यह भी उत्तल लेंस का बना होता हैं।
3.यह वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनाता हैं। 3.यह वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनाता हैं।
4.इसमें अनेक संवेदनशील भाग होते हैं। 4.इसमें भी अनेक संवेदनशील भाग होते हैं।
मानव नेत्र और फोटोग्राफी कैमरा में समानता को लिखें- 
मानव नेत्र  फोटोग्राफी कैमरा 
1.यह वस्तु का अस्थाई प्रतिबिंब बनाता है। 1.यह वस्तु का स्थाई प्रतिबिंब बनाता है।
2.यह प्रकृति उतल लेंस का बना होता है। 2.यह कृत्रिम उत्तल लेंस का बना होता है।
3.इसकी फोकस दूरी स्वतः परिवर्तित होती है  3.इसकी फोकस दूरी स्वतः परिवर्तित नहीं होती है 
Q.श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण है कैसे ?

प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन (1642-1727) ने ही सर्वप्रथम प्रिज्म की सहायता से सूर्य के प्रकाश का वर्णपट प्राप्त किया था। उन्होंने एक दुसरे पिज्म द्वारा वर्णपटके रंगों को और विभाजित करने का प्रयास किया। उन्होंने पाया की दूसरा प्रिज्म उन रंगों को और अधिक रंगों में विभाजित नहीं करता । फिर उन्होंने दुसरे प्रिज्म को पहले प्रिज्म के विपरीत रखा और पाया की दुसरे प्रिज्म से निर्गत प्रकाश श्वेत प्रकाश था | इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकला की सूर्य का प्रकाश वर्णपट के रंगों से ही बना है। कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश जैसा वर्णपट दे, श्वेत प्रकाश कहलाता है।

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मैं विक्रांत पटेल theguideacademic.com वेबसाइट के संस्थापक एवं प्रधान संपादक हूं|जो पिछले 2 वर्षो से लगातार शिक्षा से जुड़ी सभी अपडेट की जानकारी आपको देते आ रहा हूं| मैं विक्रांत पटेल बिहार के एक जिला Buxar के रहने वाला हूं, मैंने स्नातक की पढ़ाई VKSU Arah के अंतर्गत आने वाली Shershah College sasaram से किये है।मेरे द्वारा सबसे पहले सभी बोर्ड के परीक्षा से संबंधित नोट्स ,सरकारी नौकरी, सरकारी योजना, रिजल्ट, स्कॉलरशिप, एवं यूनिवर्सिटी अपडेट से जुड़ी सभी जानकारी ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से दिया जाता हैं।
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