अध्याय:02 प्रकाश का अपवर्तन
प्रकाश का अपवर्तन: जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो अपने पूर्व पथ से विचलित हो जाती है । विचलित होने की इस घटना को ही प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
अपवर्तक सतह: जिस सतह पर प्रकाश की किरणे आकर अपने ही माध्यम में लौट जाती है उस सतह को ही अपवर्तक सतह कहते हैं।
आपतित किरण: अपवर्तक सतह पर आने वाली किरण को ही आपतित किरण कहते है।
अपवर्तित किरण: अपवर्तक सतह से टकराकर जाने वाली किरण को ही अपवर्तित किरण कहते है।
आपतन बिंदु: अपवर्तक सतह के जिस बिंदु पर आपतित किरण आती है उस बिंदु को ही आपतन बिंदु कहते हैं।
अभिलम्ब: आपतन बिंदु पर डाले गये लंब को ही अभिलम्ब कहते हैं।
आपतन कोण: आपतित किरण और अभिलम्ब के बीच बने कोण को ही आपतन कोण कहते है।
अपवर्तन कोण: अपवर्तित किरण और अभिलम्ब के बीच बने कोण को ही अपवर्तन कोण कहते है।
पारदर्शी माध्यम कितने प्रकार के होते है
पारदर्शी माध्यम दो प्रकार के होते हैं : (1). विरल माध्यम (2). संघन माध्यम
1.विरल माध्यम:जिस माध्यम में प्रकाश की चाल अधिक होती है उसे विरल माध्यम कहते है।दुसरे शब्दों में, जब एक माध्यम के सापेक्ष दुसरे माध्यम में प्रकाश की चाल अधिक हो तो उस माध्यम को विरल माध्यम कहते है।
2.संघन माध्यम:जिस माध्यम में प्रकाश की चाल कम होती है उसे सघन माध्यम कहते है।दूसरे शब्दों में, जब जब एक माध्यम के सापेक्ष दुसरे माध्यम में प्रकाश की चाल कम हो तो उस माध्यम को सघन माध्यम कहते है।
♦जब प्रकाश की किरण विरल से संघन माध्यम में प्रवेश करती है तो प्रकाश की अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती हैं।
♦जब प्रकाश की किरण संघन माध्यम से वायरल माध्यम में प्रवेश करती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है।
प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम :-
- आपतित किरण अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब सभी एक ही तल में होते हैं ।
- प्रकाश के किसी निश्चित रंग तथा निश्चित माध्यमों के युग्म के लिए आपतन कोण की ज्या ( sini) तथा अपवर्तन कोण की ज्या ( sinr ) का अनुपात स्थिर होता है । इस नियम को स्नेल का अपवर्तन का नियम भी कहते हैं ।
♥जब किसी कांच की स्लैप से प्रकाश की किरण को भेजा जाता हैं तो आपतन कोण और निर्गत कोण आपस में बराबर होते हैं। i=r
पार्श्विक विस्थापन: जब किसी कांच की स्लैप से प्रकाश की किरण को भेजा जाता हैं तो आपतित किरण के बढ़ाए हुए भाग तथा निर्गत किरण के बीच जो लंबवत दूरी होती हैं ,उस दूरी को ही पार्श्विक विस्थापन कहते हैं।
पार्श्विक विस्थापन की निर्भरता:
1.यह कांच के स्लैप की मोटाई के समानुपाति होता है।
2.यह आपतन कोण के समानुपाति होता है।
3.यह अपवर्तनांक बढ़ाने से बाद जाता हैं।
अपवर्तनांक :-
• किसी माध्यम (जैसे जल, हवा, कांच आदि) का अपवर्तनाक वह संख्या है, जो बताती है कि उस माध्यम में विद्युतचुम्बकीय तरंग (जैसे प्रकाश) की चाल किसी अन्य माध्यम की की अपेक्षा कितने गुना कम या अधिक है।
- अपवर्तनांक 1 से कम कभी नहीं हो सकता है।
- निर्वात का अपवर्तनांक सबसे कम 1 होता हैं।
- सबसे अधिक अपवर्तनांक हीरा का 2.42होता हैं।
- अपवर्तनांक एक मेट्रकबीहीन राशि है।
कुछ पदार्थों के अपवर्तनांक
निरपेक्ष अपवर्तनांक :-
•निर्वात में प्रकाश की चाल तथा किसी माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात को अपवर्तनांक कहते है।
• इसमें किसी माध्यम का अपवर्तनांक निर्वात के सापेक्ष निकलते है तो उसे निरपेक्ष अपवर्तनांक कहते है।
Q.प्रकाश हवा में काँच के प्लेट में प्रवेश करती है, जिसका अपवर्तनाक 1.5 है। काँच में प्रकाश की चाल ज्ञात करें। यदि देव्रा में प्रकाश की चाल 3 x 10 m/sec है ?
आपेक्षिक अपवर्तनांक:दो माध्यमों के निरपेक्ष अपवर्तनांको के अनुपात को आपेक्षिक अपवर्तनांक कहते है।
Q. हीरे का अपवर्तनाकं 2.42 है। इससे आप क्या समझते है.?
उत्तर: हीर का अपवर्तनाकं 2.42 है जो कि काफी ज्यादा है। यह प्रकाशीय माध्यम में सघन होगा तथा इसमें प्रकाश की चाल कम होगी।
प्रिज्म
कांच का बना एक ऐसा पारदर्शी माध्यम जो तीन फ़लको से घिरा रहता है तथा जिसका कोई दो फलक आपस में समांतर न हो, प्रिज्म कहलाता हैं। या कांच का बना ऐसा पारदर्शी माध्यम जो पांच सतहों से घिरा रहता हैं,प्रिज्म कहलाता हैं।
त्रिपार्श्व प्रिज्म: कांच का बना वैसा पारदर्शी मध्यमबजीस दो सम्मुख फलक आपस में समांतर न हो, त्रिपार्श्व प्रिज्म कहलाते है। इसमें 3 आयताकार और 2 त्रिभिजाकर सतह होता हैं।
वर्ण विक्षेपण: श्वेत प्रकाश या सूर्य का प्रकाश जब किसी प्रिज्म से गुजरता है। तो वह अपने विभिन्न अवयवों में विभक्त हो जाता हैं, विभक्त होने के इस घटना को प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते है।
वर्णपट्ट या स्पैक्ट्रम: प्रिज्म के बाहर स्थित वैसा पर्दा जिसपर सातों रंग प्राप्त होते है,वर्णपट्ट या स्पैक्ट्रम कहलाते हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं:
- शुध्द वर्णपट्ट: वैसा वर्णपट्ट जिसपर सभी रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं,शुद्ध वर्णपट्ट कहलाते है।
- अशुध्द वर्णपट्ट वैसा वर्णपट्ट जिसपर सभी रंग स्पष्ट नहीं देते है। अशुद्ध वर्णपट्ट कहलाते है।
♦बैगनी रंग का तरंगदैध्य कम रहने के कारण इसका विचलन सबसे ज्यादा होता है।
♦ लाल रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक रहने के कारण इसका विचलन कम होती है।
Q.वर्ण विक्षेपण की घटना क्यों होती है।
सभी रंगो का तरंगदैर्ध्य अलग-2 रहने के कारण विचलन भी अलग-2 होता है। और इसी कारण से वर्ण विक्षेपण की घटना होती है।
Q. श्वेत प्रकाश सात रंगो का मिश्रन है। इसे एक प्रयोग द्वारा दिखाइए।
इस प्रयोग को करने के लिए दो प्रिज्म लेते है। पहले प्रिज्म का आधार नीचे तो दुसरे का आधार ऊपर करते है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।जब पहले प्रिज्म से श्वेत प्रकाश को भेजा जाता है तो वर्ण विक्षेपन होने के कारण यह सात रंगो में बट जाता है जब सातो रंगो का अपवर्तन दुसरे प्रिज्म से होता है। तो वह एक बिन्दु पर जमा हो जाती है। और श्वेत प्रकाश दिखाई देती है। इस तरह से इस प्रयोग से पता चलता है कि श्वेत प्रकाश सात रंगो का मिश्रण होता है।
विचलन कोण : बढाये गए आपतित किरण और निर्गत किरण के बीच का कोण विचलन कोण कहलाता है। इसे डेल से सुचित किया जाता है।
लेंस
लेंस: दो निश्चित आकार वाले ज्यामितीय सतहो से घिरा पारदर्शी माध्यम जिसका एक भाग अवश्य वकृत रहता हो लेंस कहलाता हैं।यह प्रायः कांच का बना होता हैं।उसका सतह गोलाकार रहने पर गोलिय लेंस और बेलनाकार रहने पर बेलनाकार लेंस कहलाता हैं।
लेंस दो प्रकार के होते हैं :-
- उत्तल लेंस
- अवतल लेंस
उत्तल लेंस :- यह बीच में मोटा और किनारों पर पतला होता है तथा दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या बराबर होती है । यह किरण पुंज को अभिसरित करता है , इसलिए इसे अभिसारी लेंस भी कहते हैं ।
अवतल लेंस :- यह बीच में पतला व किनारों पर मोटा होता है । साधारणतया इसके दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ बराबर होती हैं । यह किरण पुंज को अपसरित करता है , इसलिए इसे अपसारी लेंस भी कहते हैं ।
लेंस में सामान्यतः प्रयुक्त होने वाले कुछ शब्द :-
नोट :- ये शब्द लेंस के बारे में चर्चा करते समय सामान्यतः प्रयोग में आते हैं ।
वक्रता केंद्र :- किसी लेंस में चाहे वह उत्तल हो अथवा अवतल , दो गोलीय पृष्ठ होते हैं । इनमें से प्रत्येक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है । इन गोलों के केंद्र लेंस के वक्रता केंद्र कहलाते हैं । लेंस का वक्रता केंद्र प्रायः अक्षर C द्वारा निरूपित किया जाता है ।
मुख्य अक्ष :- किसी लेंस के दोनों वक्रता केंद्रों से गुजरने वाली एक काल्पनिक सीधी रेखा लेंस की मुख्य अक्ष कहलाती है ।
प्रकाशिक केंद्र :- लेंस का केंद्रीय बिंदु इसका प्रकाशिक केंद्र कहलाता है । इसे प्रायः अक्षर O से निरूपित करते हैं । लेंस के प्रकाशिक केंद्र से गुजरने वाली प्रकाश किरण बिना किसी विचलन के निर्गत होती है ।
द्वारक :- गोलीय लेंस की वृत्ताकार रूपरेखा का प्रभावी व्यास इसका द्वारक कहलाता है ।
पतले लेंस :- जिनका द्वारक इनकी वक्रता त्रिज्या से बहुत छोटा है और दोनों वक्रता केंद्र प्रकाशिक केंद्र से समान दूरी पर होते हैं । ऐसे लेंस छोटे द्वारक के पतले लेंस कहलाते हैं ।
लेंस का मुख्य फोकस :- उत्तल लेंस पर मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश की बहुत सी किरणें आपतित हैं । ये किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष पर एक बिंदु पर अभिसरित हो जाती हैं । मुख्य अक्ष पर यह बिंदु लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है ।
अवतल लेंस का मुख्य फोकस :– अवतल लेंस पर मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश की अनेक किरणें आपतित होती है । ये किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के एक बिंदु से अपसरित होती प्रतीत होती हैं । मुख्य अक्ष पर यह बिंदु अवतल लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है ।
फोकस दूरी :- किसी लेंस के मुख्य फोकस की प्रकाशिक केंद्र से दूरी फोकस दूरी कहलाती है । फोकस दूरी को अक्षर ‘ f ‘ द्वारा निरूपित किया जाता है ।
Q.उत्तल लेंस को अभिसारी जैस लेंस क्यों कहते है।
उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस कहते है क्योंकि मुख्य अक्ष के समान्तर आ रही प्रकाश की किरणों को ये ये मुख्य अक्ष के एक विन्दु पर अभिसरित कर देती है इसलिए इसे अभिसारी लेंस कहते है। इसका फोकस दुरी (+Ve) धनात्मक होता है।
Q.अवतल लेंस को अपसारी लेंस क्यों कहते है।
अवतल लेंस को अपसारी लेंस कहते है क्योंकि मुख्य अक्ष के समान्तर आ रही किरणों को फैला देती है इसलिए इसे अपसारी लेंस कहते है।इसका फोकस दुरी (-Ve) ऋणात्मक होता है।
Q.लेंस होने का शर्त क्या है।
जब पदार्थ का अपवर्तनांक माध्यम से ज्यादा हो तो लेंस लेंस की भांति कार्य करता है। अर्थात उत्तल लेंस उत्तल लेंस के जैसा कार्य करेगा और अवतल लेंस अवतल लेंस के जैसा कार्य करेगा।
Q. लेंस काँच की पट्टी कब बन जाता है।
जब पदार्थ का अपवर्तनांक माध्यम के बराबर हो जाए तो लेंस कांच की पट्टी जैसा कार्य करता है और इसमें इसका फोकस अनंत हो जाता है।
♦उत्तल लेंस के भागो को लिखें।
- उभयोत्तल लेंस: वैसा लेंस जिसका दोनो भाग उत्तल हो उभयोत्तल लेंस कहलाता है।
- समतोलोत्तल लेंस:वैसा लेंस जिसका एक भाग समतल तथा दुसरा भाग उत्तल हो, समतोलोतल लेंस कहलाता है।
- अवतलोत्तल लेंस:वैसा लेंस जिसका पहला भाग अवतल तथा दुसरा भाग उत्तल हो, अवतलोतल लेंस कहलाता है।
अवतल लेंस के भागो को लिखे।
- उभयावत्तल लेंस: वैसा लेंस जिसके दोनो भाग अवतल हो, उभयावतल लेंस कहलाता है।
- समतलावत्तल लेंस:वैसा लेंस जिसका जिसका एक भाग समतल तथा दुसरा भाग अवतल हो समतलावतल लेंस कहलाता है।
- उत्तलावत्तल लेंस: वैसा लेंस जिसका पहला भाग उत्तल तथा दुसरा भाग अवतल हो, उतलावतल लेंस कहलाता है।
Q. उत्तल लेंस और अवतल लेंस में अंतर लिखे ?
प्रतिबिंब:किसी बिंदु श्रोत से आती प्रकाश की किरने लेंस से अपवर्तन के बाद जिस बिंदु पर एक दुसरे को काटती है या जिस बिंदु से से आती हुई प्रतीत होती है उस बिंदु को उस बिंदु श्रोत का प्रतिबिंब कहते है ।
उत्तल लेंस में वस्तु की ओर प्रतिबिंब प्राप्त करने का नियम-
1. प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए प्रधान अक्ष के समांतर प्रकाश की किरण को भेजने से अपवर्तन के बाद फोकस से होकर गुजरती है।
2. जब प्रकाश की किरण को उत्तल लेंस के प्रकाशीक केन्द्र से भेजा जाता है तो बिना अपवर्तन हुए सीधे पार कर जाती है।
किरण आरेख:
1.जब लेंस में वस्तु को प्रकाशीक केन्द्र और फोकस के बीच रखा जाता है।
प्रकृति
- काल्पनिक
- सीधा
- बड़ा
- वस्तु के बाईं ओर होता है।
यह सरल सुक्ष्मदर्शी की स्थिती है।
उपयोग–
- घड़ीसाज घड़ी के छोटे-2 पार्ट को देखने में
- छोटे अक्षरो को बड़ा देखने में
- हस्तरेखा देखने में
2. जब उतल लेंस में वस्तु को फोकस पर रखा जाता है।
- वास्तविक
- उल्टा
- वस्तु से बहुत बड़ा
- अनंत पर
3. जब वस्तु को 2F और F के बीच रखा जाता है।
- वास्तविक
- उल्टा
- वस्तु से बहुत बड़ा
- 2f और अनंत के बीच
4. जब वस्तु को 2F पर रखा जाता है।
- वास्तविक
- उल्टा
- वस्तु के बराबर है
- प्रतिबिंब 2f पर ही बनेगा
5.जब वस्तु को 2F और अनंत के बीच रखा जाता है। तो इसका प्रतिबिंब वास्तविक उल्टा और वस्तु से छोटा बनता है।
- वास्तविक
- उल्टा
- वस्तु से छोटा प्रतिबिंव बनेगा
- प्रतिबिंब f और 2f के बीच बनेगा
6. जब वस्तु को अनंत पर रखा जाता है। तो उसका प्रतिविव वास्तविक, उल्टा और वस्तु से बहुत छोटा बनता है।
- वास्तविक।
- उल्टा
- वस्तु से बहुत छोटा
- प्रतिबिंब फोकस f पर बनेगा
♦ अवतल लेंस में बनने वाले किरण आरेख –
1. जब वस्तु को अन्नत पर रखा जाता है-
जब वस्तु को अन्नत में रखा जाये तो उसका प्रतिबिंब काल्पनिक, सीधा,वस्तु से बहुत छोटा और फोकस पर बनता हैं।
2. जब वस्तु को प्रकाशिक केंद्र और अनंत के बीच रखा जाए।
जब वस्तु को प्रकाशिक केंद्र और अनंत के बीच रखा जाए तो उसका प्रतिबिंब फोकस F और प्रकाशिक केंद्र के बीच काल्पनिक,सीधा, वस्तु से छोटा तथा लेंस के बाई ओर बनेगा।
3.जब वस्तु को f और 2f के बीच रखा जाए तो
जब वस्तु को फोकस f और 2f के बीच रखा जाए तो उसका प्रतिबिंब फोकस और प्रकाशिक केंद्र के बीच काल्पनिक,सीधा, वस्तु से छोटा तथा लेंस के बाई ओर बनेगा।
लेंस में चिह्न परिपाटी
- दर्पण की बाईं ओर से प्रकाश की किरण आपतित की जाना चाहिए
- दर्पण से संबंधित फोकस दूरी, वक्रता त्रिज्या, प्रतिबिंब की दूरी दर्पण से वस्तु की इत्यादि सभी को ध्रुव से नापी जानी चाहिए
- जिस दिशा में आपतित किरण जाती है उस दिशा में मापी गई सभी दूरियां धनात्मक दी जाती है और इसके विपरीत सभी दूरियां मैं ऋणात्मक चिन्ह लिया जाता है
- इसलिए उत्तल दर्पण की फोकस दूरी धनात्मक और अवतल दर्पण की फोकस दूरी ऋणात्मक ली जाती है
- यदि वस्तु और प्रतिबिंब मुख्य अक्ष के ऊपर है तो उनकी लम्बाईयाँ धनात्मक ली जाती है और इसके नीचे है तो इनकी लम्बाईयाँ ऋणात्मक लिखी जाती है
- U का चिन्ह हमेशा ऋणात्मक लिया जाता है
- वास्तविक प्रतिबिंब के लिए v ऋणात्मक और आभासी प्रतिबिम्ब के लिए v धनात्मक लिया जाता है
- अवतल दर्पण के लिए f ऋण आत्मक व उत्तल दर्पण के लिए धनात्मक लिया जाता है।
लेंस की क्षमता (power of lens):-
किसी लेंस के प्रधान अक्ष के समानांतर आ रही प्रकाश की किरणे को जो लेंस जितना अधिक विचलित करता हैं,उसे ही लेंस की क्षमता कहते है।या लेंस के फोकस दूरी के व्युत्क्रम को ही लेंस की क्षमता कहते हैं।
इसका S.I मात्रक डाइऑफटर( D) होता हैं।
आवर्धन:
◊ लेंस-सूत्र- लेंस के लिए वस्तु दूरी (u), प्रतिबिंब दूरी (v) और फोकस दूरी (f) के बीच के संबंध को एक सूत्र से बताया जाता है, जिस लेंस-सूत्र कहते है।
✪ कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जो परीक्षा में पूछे जाते है:
Q. इंद्र धनुष क्या है।
ऊतर ➨ यह एक प्रकार का प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है जो वर्षा के बाद सूर्य के विपरीत दिशा में दिखाई देता हैं।इसमें प्रक्षेपण , अपवर्तन,पूर्णांतरिक परिवर्तन, वर्णविक्षेपण जैसी घटनाएं होती है।
यह दो प्रकार के होता हैं:
1. प्राथमिक इंद्रधनुष 2. द्वितीयक इंद्रधनुष
1. प्राथमिक इंद्रधनुष: इस इंद्रधनुष के बाहरी किनारे पर लाल और अंदर वाले पर लाल होता हैं।
2. द्वितीयक इंद्रधनुष: इस इंद्रधनुष के बाहरी किनारे पर बैंगनी और अंदर वाले पर लाल होता हैं।
Q. ग्रह नहीं टिमटिमाते है क्यो?
तारो के अपेक्षा ग्रह पृथ्वी के काफी नजदीक है जिसके कारण इसका वायुमंडलीय अपवर्तन का औसत लगभग शुन्य होता है। इसलिए ग्रह नहीं टिमटिमाते है।
Q.सुर्योदय एव सूर्यास्त के समय सूर्य अंडाकार दिखता है जबकि दोपहर के समय में गोल दिखता है, क्यों?
सुर्योदय एंव सूर्यास्त के समय वायुमंडलीय अपवर्तन अधिक और असमान रुप से होता है। जबकि दोपहर के समय लंबवत प्रकाश की किरणे गिरती है जिसके कारण वायुमंडलीय अपवर्तन न के बराबर होता है। यही कारण है कि सुर्योदय एवं सुर्यास्त के समय अंडाकार दिखता है जबकि दोपहर के समय सुर्य गोलाकार दिखता है।
Q. प्रकाश का प्रकीर्णन क्या है?
जब सुर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न गैस, अणु. परमाणु प्रकाश को अवशोषित कर लेते है। और कुछ समय के बाद ये प्रकाश को चारो दिशाओ में फैलाते है, प्रकाश के इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है।
Q. टिंडल प्रभाव क्या है?
जब कोलायडी कण प्रकाश की प्रकीर्णन को दर्शाते है तो इस घटना को टिंडल प्रभाव कहा जाता है।
– जब अंधेरे कमरे में खिडकी से प्रकाश की किरणे आती है तो उसके रास्ते में घुल-कण चमकते है।
– जब किसी कमरे में धुआँ भरा हो और प्रकाश की किरण आये तो उसके रास्ते में चमकते हुए कण दिखाई देते है।
Q.स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है?
प्रकीर्णित प्रकाश की त्रिवीत तरंगदैर्ध्य के चौथे भाग का व्युतक्रमानुपाती होता है अर्थात जिस रंग का तरंगदैर्ध्य अधिक होगा उसका प्रकीर्णन कम होगा तथा जिस रंग का तरंगदैर्ध्य कम होगा उसका प्रकीर्णन अधिक होगा। इसलिए बैगनी एवं नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन ज्यादा होता है और हमारी आँख बैगनी के अपेक्षा नीला रंग ज्यादा देखता है, इसलिए आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
Q. अंतरिक्ष यात्री को आकाश काला दिखता है, क्यों?
इसके निम्नलिखित कारण है:
i. अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं है।
ii. अंतरिक्ष में प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है।
Q.बादलों का रंग सफेद होता है, क्यों ?
बदलो का निर्माण सुक्ष्म कणो से बना होता है। ये सुक्ष्म कण अलग-2 आकार में होते है। जिसके कारण प्रकीर्णन का औसत लगभग एक समान हो जाता है। यही कारण है कि बादलो का रंग सफेद होता है।
Q. सुर्योदय एवं सुर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखता है, क्यों ?
जैसा की हम लोग जानते है कि लाल रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे ज्यादा होता है जिसके कारण उसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है और वह ज्यादा दुरी तय करता है, इसलिए सुर्योदय एवं सुर्यास्त के समय सुर्य लाल दिखता है।
Q. खतरे का संकेत लाल होता है? क्यो
जैसा कि हमलोग जानते है कि लाल रंग का तरंगदैर्ध्य ज्यादा होने के कारण उसका प्रकीर्णन कम होता है। और ज्यादा दुरी तय करता है इसलिए खतरे का संकेत लाल रंग का होता है।
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